भारत की ताकत
कल अंतराष्ट्रीय न्यायालय की एक बची हुयी सीट पर भारत के न्यायाधीश दलवीर भंडारी की विजय, सिर्फ भारत की एक उपलब्धि नही है बल्कि यह एक इतिहासिक घटना है। इस चुनाव को लेकर अब जो घटनाक्रम सामने आये है वह न सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी जी के भारत की कूटनैतिक आक्रमकता की सफलता की कहानी कहती है बल्कि वह मोदी जी के नेतृत्व में भारत के अंतराष्ट्रीय परिदृश्य में बढ़ती हुयी शक्ति को भी दर्शाती है।
अंतराष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों का चुनाव संयुक्तराष्ट्र संघ के सदस्य राष्ट्र जो 193 है व सुरक्षा परिषद जिसके 15 राष्ट्र सदस्य है वह करते है। यदि दोनों में ही मतभेद होता है तो बार बार मतदान करके किसी एक प्रत्याक्षी को चुना जाता है। इस आखरी बची सीट के लिये भारत के न्यायाधीश दलवीर भंडारी के साथ इंग्लैंड के न्यायाधीश ग्रीनवुड प्रत्याक्षी थे। इंग्लैंड न सिर्फ सुरक्षापरिषद का स्थायी सदस्य है बल्कि 1946 से, जबसे इस अंतराष्ट्रीय न्यायालय का गठन हुआ है तब से पिछले 70 वर्षों से उसका एक न्यायाधीश सदस्य रहा है।
सुरक्षापरिषद में जब वोटिंग हुयी तो उसमें इंग्लैंड के ग्रीनवुड को 9 वोट मिले और भारत को 6 वोट मिले थे लेकिन संयुक्तराष्ट्र की जनरल असेंबली ने इंग्लैंड के ग्रीनवुड को लेकर कोई सहमति नही बनी। इसको लेकर जनरल असेंबली बार बार मतदान करती रही और हर मतदान में भारत के प्रत्याक्षी न्यायाधीश भंडारी को बढ़त मिलती गयी। अंत मे भारत को 193 सदस्यी असेंबली में 121 वोट प्राप्त कर के करीब दो तिहाई बहुमत प्राप्त हो गया।
जनरल असेंबली में भारत को स्पष्ट बहुमत प्राप्त हो जाने के बाद भी सुरक्षापरिषद अपनी पसंद इंग्लैंड के ग्रीनवुड के पक्ष में ही अड़ी रही क्योंकि सुरक्षापरिषद के 5 स्थायी सदस्य राष्ट्र अपनी शक्ति के प्रभाव को बनाय रखना चाहते थे। उनके लिये यह जरूरी था कि भारत की कूटनैतिक प्रभाव को दरकिनार करे क्योंकि यदि आज भारत, इंग्लैंड, जो सुरक्षापरिषद का स्थायी सदस्य है, उसके खिलाफ़ लामबंद हो कर सफल होता है तो कल अन्य स्थायी सदस्यों के खिलाफ भी संयुक्तराष्ट्र संघ में चुनौती दे सकता है।
भारत के अपने प्रत्याक्षी को लेकर अड़ा देख कर, हताश इंग्लैंड ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिये संयुक्त सभा का अवाहन किया जिसमें सुरक्षापरिषद और जनरल असेंबली के 3-3 सदस्य मिल कर किसी एक नाम पर अपनी सहमति बनाये। इंग्लैंड का यह प्रस्ताव कितना विस्मित करने वाला था इसी से समझा जासकता है कि इस तरह की संयुक्त सभा को बुलाने की प्रक्रिया, नियमो में तो उल्लेखित है लेकिन आज तक इस तरह की संयुक्तसभा को कभी बुलाया नही गया था। इसी आवाहन के साथ यह भी खबरें आने लगी थी कि भारत अपने प्रत्याक्षी दलवीर भंडारी का नाम वापस ले लेगा और भारत इस संयुक्तसभा के लिये सहमत हो गया है। लेकिन भारत के स्थायी प्रतिनिधि सईद अकबरुद्दीन ने इस तरह की सभी खबरों का खंडन कर दिया और भारत ने अपने प्रत्याक्षी न्यायाधीश भंडारी की प्रभावशाली कूटनैतिक वकालत करते हुये फिर से मतदान की बात कही।
भारत की इस कूटनैतिक आक्रमकता से इंग्लैंड असहज हो गया और अपने प्रत्याक्षी के लिये घटते समर्थन को देखते हुये, मतदान से पहले, जस्टिस ग्रीनवुड के नाम को वापिस ले लिया। इसका परिणाम यह हुआ कि भारत को जनरल असेंबली में 183 वोट और सुरक्षापरिषद में 15 वोट मिले और भारत के न्यायाधीश दलवीर भंडारी, अंतराष्ट्रीय न्यायालय के लिये हुये चुनाव को जीत गये।
इस जीत के साथ प्रधानमंत्री मोदी जी ने भारत के बढ़ते प्रभाव व उसकी कूटनैतिक इच्छाशक्ति को विश्वपटल पर स्थापित कर दिया है।
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