ENGLISH MEDIUM NOT FOR EVERYONE

बच्चा रटता है-"हटी-डम्टी सेट आन ए वाल।" लेकिन वह अर्थ नहीं समझता। इसका अर्थ और इसकी पृष्ठभूमि बेचारे शिक्षकों को भी मालूम नहीं। इसके विपरीत जब बच्चा यह याद करता है मछली जल की रानी है, उसका जीवन पानी है हाथ लगाओ डर जाती है, बाहर निकालो मर जाती है।' यह मात्र कविता भर नहीं है। बिना कहे भी बहुत कुछ कह जाती हैं ये पंक्तियाँ।
बच्चे के जीवन की यह एक विचित्र दुर्घटना है। अंग्रेजी माध्यम के  पब्लिक स्कूल दुर्घटना स्थल हैं।
कटु यथार्थ
शिक्षा में निजी पूंजी के निवेश ने शिक्षा को एक उद्योग का रूप दे दिया है।अनेक प्रभावशाली राजनेताओंपत्र समूहों उद्योगपतियों ने शिक्षा के क्षेत्र में बड़े बड़े साम्राज्य खड़े कर लिए हैं ।स्वाभाविक है कि आर्थिक हित साधन।के लिए ही अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है।
अंग्रेजी माध्यम स्कूल साधन-सुविधाओं की दृष्टि से बहुत सम्पन्न हैं। एक व्यावसायिक प्रतिष्ठान जैसा उनका रखरखाव है।'विद्या मंदिर' जैसा बोध विद्यार्थियों में नहीं जगा पाते।अंग्रेजी माध्यम स्कूलों की शिक्षा बहुत मंहगी है। प्रवेश के लिए भारीभरकम राशि देनी पड़ती है। शुल्क, गणवेश, पाठ्य सामग्री, वाहनपुस्तकें बाजार दर से काफी मंहगी। परिवार की आय का अच्छा-खासा भाग बच्चोंकी प्राथमिक-माध्यमिक शिक्षा पर व्यय होता है।गत वर्षों में पिछड़े और निम्न आय वर्ग में अंग्रेजी के प्रति आकर्षण काफी बढ़ा है। सम्पन्न लोगों की देखादेखी यह वर्ग अपना पेट काटकर भी अपने
बच्चों को अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाना चाहता है। उसका ऐसा सोचना स्वाभाविकहै ।जिन परिवारों में शिक्षा की कोई पृष्ठभूमि नहीं है, ऐसे लोग भी, दुनियादारी के चलतेअपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूल में प्रवेश दिला रहे है। परिणामतएक ओर तो उन परिवारों की आर्थिक स्थिति पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है।' दूसरी ओर बच्चों का स्वाभाविक विकास भी अवरूद्ध हो रहा है। अंग्रेजीइनके अर्थशास्त्र को बिगाड़ रही है।
हमारी वर्तमान शिक्षा का संस्कार शहरी है। बड़ेबड़े अंग्रेजी स्कूलों कीशिक्षा का संस्कार तो महानगरीय ही है। जरूरत से कुछ ज्यादा ही।
'अभिजन' और 'अभिजात्य ही इन विद्यालयों का सच है।पूर्व में ट्यूशन का इतना चलन नहीं था। अंग्रेजी स्कूलों ने प्राइवेट ट्यूशनको विद्यालयीन शिक्षा का एक अनुबंग ही बना दिया।अंग्रेजी स्कूलों में प्रोजेक्ट वर्क पर अत्यधिक बल दिया जाता है।सभी लोगजानते हैं कि अभिभावक ही मेहनत करके बच्चों का प्रोजेक्ट वर्क पूरा करते हैं । यह एक अपरिभाषित छद्म है-नाम बच्चे का, काम अभिभावकों का।अंग्रेजी स्कूलों में मातृभाषा और संस्कृत के अध्ययन और अध्यापन को।वरीयता नहीं मिलती ।मातृभाषा की उपेक्षा से होने वाली सांस्कृतिक क्षति काअनुपात निरन्तर बढ़ता जाता है।अंग्रेजी स्कूलों के बालक और पालक दोनों का महत्वपूर्ण पक्ष है उनकी दृढ़आर्थिक स्थिति।किसके पास कितना अधिक कीमती सामान है, यह भावना इन विद्यालयों के विद्यार्थियों में रहती है।
अंग्रेजी पब्लिक स्कूलों के बच्चे मातृभाषीय विद्यालयों और उनके विद्यार्थियों।के लिए तो हेय भावना रखते ही है, वे अंग्रेजी माध्यम के अन्य सामान्य ।
विद्यालयों और उनके विद्यार्थियों के प्रति भी हीन भावना रखते हैं।भारतीय समाज की पहली आवश्यकता है सामाजिक समरसता और
सामाजिक न्याय दोनों के लिए आवश्यक है नागरिकों में सामाजिक संवेदनाऔर सामाजिक समायोजन की क्षमता हो। अंग्रेजी पब्लिक स्कूल के बच्चों के सामाजिक पक्ष की स्थिति किससे छिपी है?
अंग्रेजी मिशन/पब्लिक स्कूल के विद्यार्थियों से देश के महापुरुषों के विषय मेंपूछिए । बड़ी कठिनाई से वह पाँच दस नाम गिना पाएगा। अपने पूर्वजों के प्रति गौरव का भाव नगण्य !भारतीय कालगणनाऋतुचक्र, उत्सव आदि के विषय में इन विद्यार्थियों कीजानकारी बड़ी उथली होती है।
अपने देश, धर्मसंस्कृति के प्रति अज्ञान भी और हेय भावना भी।
भारत में साहित्य की एक लम्बी वाचिक परम्परा है। लोकगीत,लोककथाएँ.लोकसंगीतकहावतेंपहेलियाँ हमारी जनसम्पदा हैं। इस सबके प्रति इन
संस्थाओं में घोर दुर्लक्ष्य!स्वदेशी के प्रति लगाव नहीं विदेशी हर चीज के प्रति आकर्षण और उसकी प्राप्ति के लिए माता-पिता से आग्रह !इच्छा पूर्ति न होने पर कलह और क्लेश।अंग्रेजी भाषा, अंग्रेजी साहित्यअंग्रेजी जीवनशैलीअंग्रेजी संस्कृति विश्व में सबसे श्रेष्ठ संस्कृत कर्मकाण्ड की भाषा ! अन्य भारतीय भाषाएँ और उनकेसाहित्य में श्रेष्ठ कुछ भी नहीं प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से ऐसी ही मानसिकता यहाँ के विद्यार्थियों में देखने को मिलती है।
अंग्रेजी पब्लिक स्कूल के विद्यार्थियों में स्वावलम्बन की वृत्ति विरल है । सबकाम के लिए सहायक चाहिए।
महाविद्यालयों में एन.सी.सी. और राष्ट्रीय सेवा योजना की व्यवस्था रहती है।अंग्रेजी पब्लिक स्कूल की पृष्ठभूमि वाले युवकों की राष्ट्रीय सेवा योजना में रुचि कम रहती है।गाँव की मलिन बस्तियों में जाकर सेवा कार्य करना इनकी अभिरुचि की परिधि में कैसे आ सकता है?
उसके बाद भी अगर हम ये सोचें कि हमारा बच्चा
पढ़ लिख कर हमारा नाम रोशन करेगा तो क्या ऐसा हो पाएगा ?...

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