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श्री रोशन लाल जी सक्सेना

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मध्यप्रदेश शिशु मंदिर के पितामह नहीं रहे... सीधी में दिनांक ५ अक्टूबर १९३१ को जन्मे श्री रोशनलाल सक्सेना आज हमारे बीच नहीं रहे। मा. रोशनलाल जी ने ने रीवा से गणित में एम.एस.सी. किया ! १९४३ से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखाओं में गटनायक. गणशिक्षक, मुख्यशिक्षक, रीवा नगर कार्यवाह आदि उत्तरदायित्वों का निर्वाह कि या ! १९६२,१९६३ तथा १९६६ में संघ शिक्षा वर्ग किये ! १९५४ से १९६४ तक महाविद्यालय में अध्यापन कार्य किया ! १२ फरवरी १९५९ बसंत पंचमी गुरूवार को एक धर्मशाला के छोटे से कमरे में पहला सरस्वती शिशु मंदिर प्रारंभ हुआ जिसकी प्रवंध समिति के रोशनलाल जी सचिव थे ! सन १९६० से देवपुत्र का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ ! सन १९६४ में महाविद्यालय की नौकरी छोडकर श्री सुदर्शन जी के स्थान पर रीवा विभाग प्रचारक बने ! धीरे धीरे विन्ध्य क्षेत्र में शिशु मंदिरों की संख्या बढकर १२ हो गई ! तब विन्ध्य क्षेत्र की प्रांतीय इकाई बनाकर उसमें हर जिले को प्रतिनिधित्व दिया गया ! उस समिति में भी सक्सेना जी सचिव रहे ! सन १९७४ में शिशुमंदिर तक सीमित हो, सचिव के रूप में पूरे प्रांत की रचना देखना प्रारम्भ हुआ ! मध्य प्रदेश के सा

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बच्चों को समझें

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एक कहानी . .... पिता बेटे को डॉक्टर बनाना चाहता था। बेटा इतना मेधावी नहीं था कि NEET क्लियर कर लेता। इसलिए  दलालों से MBBS की  सीट खरीदने का जुगाड़ किया । ज़मीन, जायदाद, ज़ेवर सब गिरवी रख के 35 लाख रूपये दलालों को दिए, लेकिन अफसोस वहाँ धोखा हो गया। अब क्या करें...? लड़के को तो डॉक्टर बनाना है कैसे भी...!! फिर किसी तरह विदेश में लड़के का एडमीशन कराया गया, वहाँ लड़का चल नहीं पाया। फेल होने लगा.. डिप्रेशन में रहने लगा। रक्षाबंधन पर घर आया और घर में ही फांसी लगा ली। सारे अरमान धराशायी.... रेत के महल की तरह ढह गए.... 20 दिन बाद माँ-बाप और बहन ने भी कीटनाशक खा कर आत्म-हत्या कर ली। अपने बेटे को डॉक्टर बनाने की झूठी महत्वाकांक्षा ने पूरा परिवार लील लिया। माँ बाप अपने सपने, अपनी महत्वाकांक्षा अपने बच्चों से पूरी करना चाहते हैं ... मैंने देखा कि कुछ माँ बाप अपने बच्चों को Topper बनाने के लिए इतना ज़्यादा अनर्गल दबाव डालते हैं कि बच्चे का स्वाभाविक विकास ही रुक जाता है। आधुनिक स्कूली शिक्षा बच्चे की Evaluation और Grading ऐसे करती है, जैसे सेब के बाग़ में सेब की खेती की जाती है। प